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थायराइड से महिलाओं में हो सकती है इनफर्टिलिटी, लेकिन आयुर्वेद से माँ बनना संभव : डॉ. चंचल शर्मा  

कुलवंत कौर, संवाददाता 

नई दिल्ली। इंफर्टिलिटी आज एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में छह में से एक व्यक्ति इनफर्टिलिटी से प्रभावित है। डब्ल्यूएचओ न कहा कि लगभग 17.5 प्रतिशत वयस्क आबादी निसंतानता का शिकार है। इससे पता चलता है कि जरूरतमंद लोगों के लिए सस्ती, उच्च गुणवत्ता वाली प्रजनन देखभाल पहुंचाने की तत्काल आवश्यकता है। 

वहीं थायराइड की बीमारी कभी एक ऐसी स्थिति थी जो मुख्य रूप से उम्रदराज लोगों को प्रभावित करती थी, लेकिन अब यह वयस्कों को भी प्रभावित कर रही है। गलत खानपान और लाइफस्टाइल के कारण लोग इस बीमारी के शिकार हो रहे हैं। थायराइड में गड़बड़ी की वजह से स्त्री में प्रजनन क्षमता भी प्रभावित होती है। आज इस लेख में आशा आयुर्वेद की निदेशक डॉ. चंचल शर्मा थायरॉइड डिसफंक्शन और इनफर्टिलिटी के बीच संबंध के साथ-साथ इसके उपचार के बारे में चर्चा करेंगी।

एनआईए की रिपोर्ट के मुताबिक 20 प्रतिशत महिलाओं को जांच से पहले थायराइड की समस्या की पहचान नहीं हो पाती है। इस मामले में, एक महिला को निसंतानता की समस्या ज्यादातर उसके थायराइड के कारण हो सकती है। हाइपोथैलेमो-पिट्यूटरी-ओवेरियन एक्सिस और प्रजनन अंगों के साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष बातचीत के माध्यम से गंभीर थायरॉइड डिसफंक्शन मासिक धर्म संबंधी विकार और निसंतानता का कारण बन सकता है। 

डॉ. चंचल कहती हैं कि हाइपोथायरायडिज्म, या शरीर में थायरॉइड हार्मोन के स्तर में कमी के कारण ओव्यूलेशन प्रक्रिया बाधित होती है, जिससे महिलाओं में निसंतानता की समस्या हो सकती है। इसके अलावा, हाइपोथायरायडिज्म भी अंडाशय में प्रोजेस्टेरोन उत्पादन को कम कर देता है, जिससे गर्भधारण करना मुश्किल हो जाता है।थायराइड प्रेगनेंसी में अहम भूमिका निभाती है। हाइपरथायरायडिज्म से महिलाओं में प्रारंभिक गर्भावस्था में गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। अगर ओवरएक्टिव थायराइड यानी हाइपरथायरायडिज्म का इलाज सही तरीके से न किया जाए तो महिलाओं को गर्भधारण करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, गर्भधारण के बाद हाइपरथायरायडिज्म के कारण गर्भवती महिलाओं में उच्च रक्तचाप, समय से पहले प्रसव, बच्चे का विकास न होने जैसी जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं।

एलोपैथिक इलाज में थायराइड में होने वाली प्रेगनेंसी के लिए आईवीएफ को ही जोर देते है। लेकिन डॉ. चंचल शर्मा कहती है कि एलोपैथिक साइंस के अलावा आयुर्वेद नेचुरल तरीके से सुरक्षित और बिना साइड इफेक्ट गर्भधारण कर सकती है। हर महिला का सपना होता है कि उसे बच्चा हो, लेकिन कई तरह की परेशानियों के चलते कई बार यह इच्छा पूरी नहीं हो पाती। आशा आयुर्वेदा में पंचकर्मा पद्धति की उत्तर बस्ती विधि के बदौलत महिलाओं की कोख भर रही है।

पंचकर्म प्रक्रिया की उत्तर बस्ती चिकित्सा के दौरान एक कैथेटर के माध्यम से आयुर्वेदिक दवाओं और तेल को महिला के गर्भाशय में डाला जाता है। यह विधि से हार्मोनल असंतुलन, आईवीएफ विफलता, हाइड्रोसालपिनक्स, बार बार यूटीआई होना, गर्भाशय फाइब्रॉएड, पीसीओडी, पीसीओएस, कम एएमएच, एंडोमेट्रिसिस, अनियमित पीरियड्स, ट्यूबल ब्लॉकेज और गर्भावस्था में किसी भी अन्य जटिलताओं का इलाज किया जा सकता है। इसके अलावा इस पद्धति में डॉक्टर आपके चिकित्सा इतिहास में आपके थायराइड और उससे गर्भावस्था में होने वाली जटिलताओं के बारे में जानते है, साथ ही आपकी जीवनशैली से लेकर आपके खानपान की आदतों के लिए डाइट चार्ट प्लान भी बनाना भी शामिल है। 

डॉ. चंचल शर्मा के अनुसार, जिन महिलाओं को महंगे आईवीएफ इलाज के बाद भी दर्द होता रहता है, उनके लिए आयुर्वेदिक दवाई भगवान का वरदान है। आईवीएफ उपचार की तुलना में उत्तर बस्ती उपचार कई गुना सस्ता और प्रभावी भी है। आयुर्वेदिक उपचार के बारे में सबसे बड़ी बात यह है कि यह सस्ती है और इसकी उच्च सफलता दर है।

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