भारतीय भाषा दिवस...

दिल्ली विश्वविद्यालय की भारतीय भाषा समिति द्वारा भारतीय भाषा दिवस पर विशेष कार्यक्रम

कुलवंत कौर, संवाददाता 

नई दिल्ली। भारतीय भाषा दिवस पर दिल्ली विश्वविद्यालय की भारतीय भाषा समिति, एवं राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में भारतीय भाषाएं और राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 विषयक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। ध्यातव्य है कि भारत सरकार ने तमिल महाकवि और राष्ट्र कवि चिन्नास्वामी सुब्रमण्यम भारती के जन्मदिन (11 दिसंबर) को भारतीय भाषा दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव किया है। कार्यक्रम में भारतीय भाषाओं और उनके माध्यम से राष्ट्रीय एकता और उत्थान की बात की गई ।

कार्यक्रम के संयोजक प्रो. निरंजन कुमार, अध्यक्ष, मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम समिति, तथा डीन प्लानिंग, दि.वि. ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि तमिल राष्ट्रीय कवि सुब्रह्मण्यम भरतियार भारतीय राष्ट्रीय एकता के बड़े प्रतीक हैं और उनकी जयंती को भारतीय भाषा दिवस के रूप में मनाना भारत सरकार का सराहनीय कदम है। आपने पूर्व औपनिवेशिक युग की ऐतिहासिक पड़ताल करते हुए बताया कि भारतीय भाषाओं में ज्ञान-विज्ञान भरा पड़ा है और यह राष्ट्र को विकसित करने में पूरी तरह सक्षम है। आपने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के बारे में कहा कि यह भारतीय भाषाओं पर बहुत बल देती है और भारत अब इसके मार्गदर्शन में विकसित राष्ट्र बनने के लिए तैयार है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे दि.वि. के माननीय कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने भाषाओं को संवेदना का विषय बताया। आपने कहा कि भाषा नहीं बल्कि भाषा को बोलने वाले तय करते हैं कि भाषा कमज़ोर है या मज़बूत। आपने समस्त राज्यों में बाकी राज्यों के विद्यार्थियों के पठन पाठन को आगे बढ़ाने की बात की। आपने राष्ट्रीय एकता और प्रेम के लिए सभी से दूसरी भारतीय भाषा सीखने का भी आह्वान किया और प्रधामनंत्री के आह्वान पर विकसित भारत की राह में दिल्ली विश्वविद्यालय के योगदान की बात की।

विशिष्ट अतिथि प्रो. रविप्रकाश टेकचंदानी ने भारतीय भाषा दिवस को भारतबोध और भारत की एकता बोध का दिवस बताया। आपने भारतीय भाषाओं की ताकत के बारे में बात करते हुए कहा कि भारत अब सामर्थ्य की ओर आगे बढ़ रहा है। 

मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित श्री अतुल कोठारी जी, राष्ट्रीय सचिव, ‘शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास’ ने कहा कि शिक्षा में परिवर्तन भाषा की सशक्तिकरण के बाद ही संभव है। आपने कहा कि स्वतंत्र भारत में भाषा को झगड़े का घर बना दिया गया। आपने बड़े वैज्ञानिकों का उदाहरण देते हुए कहा कि रचनात्मकता और नवाचार अपनी ही भाषा में संभव है। आज अपनी भाषाओं के प्रति स्वाभिमान जगाने की जरूरत है। भाषा विचारों के आदान प्रदान के साथ-साथ लोगों को एक साथ जोड़ने का माध्यम है और भाषा को मजबूत बनाने का कार्य स्वयं से शुरू करना होगा। आपने इस बात पर बल दिया कि माँ, मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं है।

अंत में धन्यवाद ज्ञापन प्रो. अमिताभ चक्रवर्ती, अधिष्ठाता, कला संकाय द्वारा एवं मंच संचालन तमिल विभाग की प्रोफेसर डी. उमा देवी द्वारा किया गया। कार्यक्रम में अकादमिक जगत से जुड़े गणमान्य व्यक्तित्व और विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, प्रोफेसर्स और शोधार्थी बड़ी संख्या में मौज़ूद रहे।

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