वयोवृद्ध...

वयोवृद्ध, अति वरिष्ठ लोगों को यथोचित सम्मान मिलना चाहिए

नई दिल्ली। आज सामाजिक परिवेश बड़ी तेजी से बदल रहा है। वयोवृद्ध अति वरिष्ठ लोगों की पग पग पर अवहेलना हो रही है। जो सम्मान उनको मिलना चाहिए वह नहीं मिल रहा है। कागजों में तो अति वरिष्ठ लोगों के लिए अनेक योजनाएं बना रखी हैं, परंतु धरातल पर कुछ भी नहीं है। 

सरकारी अस्पतालों, औषधालयों में अति वरिष्ठ लोगो को एक काउंटर से दूसरे काउंटर पर धक्के खाने पड़ते हैं। वह विचारे स्वयं तो सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को प्राप्त करने में असमर्थ हैं, और अगर कोई उनका पड़ोसी उनको वहां ले जाता है तथा स्वास्थ्य केंद्र के कर्मचारी और चिकित्सकों से अति वरिष्ठ व्यक्तियों के लिए जांच प्रार्थना करता है तो वह उससे भी अभद्र व्यवहार करते हैं। कुछ दिन पूर्व मेरा एक परिचित परिवार पति-पत्नी मुझे मालवीय नगर सरकारी अस्पताल में ले गए। उन वेचारों को मुझे दिखाने के दौरान जिस तरह की प्रताड़ना, अपमान और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा उससे मेरी आत्मा को बहुत दुख हुआ। मैंने सोचा मुझे अपने रोगों के निदान के लिए किसी अन्य की सहायता स्वीकार नहीं करनी चाहिए क्योंकि हमारा समाज पूरी तरह से अनैतिक हो चुका है। 

केंद्र सरकार के अपने कर्मचारियों के लिए बने अस्पताल और सीजीएचएस डिस्पेंसरी में भी स्थिति अनुकूल नहीं है। नियमों के अनुसार 80 वर्ष के आयु के ऊपर रोगियों को तुरंत बिना प्रतिक्षा करवाये निदान देना जरूरी है, परंतु वहां भी कुछ ऐसा नहीं होता है। 

डिस्पेंसरियों में आने वाले स्पेशलिस्ट अति वरिष्ठ रोगियों को न देखकर युवा पीढ़ी के लोगों को प्राथमिकता देते हैं। नियमों के अनुसार अति वरिष्ठ लोगों को बिना प्रतीक्षा किया सीधे ही चिकित्सा विशेषज्ञ के पास जाने की अनुमति होनी चाहिए, पर ऐसा नहीं होता है। 

डाकघर में अति वरिष्ठ नागरिकों को धक्के खाते देखना एक आम बात है। काउंटर के पीछे बैठे हुए कर्मचारी उनकी व्यथा को नहीं देखते बल्कि उनसे दुर्व्यवहार करते हैं। 

सरकारी बैंकों में भी अति वरिष्ठ नागरिकों को घंटों खड़ा रखा जाता है, बेचारे अपनी पासबुक में प्रविष्ट के लिए घंटों खड़े देखे जाते हैं। 

अधिकतर वरिष्ठ नागरिक अपनी बचत को अवधी योजना में बैंकों में जमा करते हैं परंतु जब उसकी नवीनीकरण करने के लिए जाते हैं तो उनको घंटे बैठाए रखा जाता है। अनेकों बार तो यह कहा जाता है कल आना, अभी हम काम में व्यस्त हैं जबकि आज के कंप्यूटरीकरण के युग में 5-10 मिनट का काम है। 

अति वरिष्ठ नागरिकों के घरों के आगे लोग अपने वाहन खड़े कर देते हैं जिससे उनको घर से अंदर बाहर आने में तकलीफ होती है। अगर किसी को ऐसा न करने के लिए कहा जाए तो वह लोग लड़ने झगड़ने पर उतर आते हैं। 

युवा अवस्था में लोग अक्सर ऐसा सोचते हैं कि बुढ़ापा आने पर सुख आराम का जीवन जिएंगे। वह शांति से अपने जीवन के अंतिम पलों को जीना चाहते हैं, परंतु ऐसा हो नहीं पाता है। उनके घरों के आगे पीछे, दाएं-बाएं धड़ले से अवैध निर्माण होता है। शोर-शराबा और धूल-मिट्टी उनके सुख-चैन छीन लेती है। सरकारी कर्मचारियों को घूस के चलते यह सब दिखाई नहीं देता है। अवैध निर्माण से हमें कोई परेशानी नहीं परंतु यह हमारा सुख चैन नहीं छीनना चाहिए। धूल मिट्टी और तोड़फोड़ की ठक-ठक से जीवन के सुख चैन छीनने वाले को स्थानीय निगम पार्षद व विधायक का यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि वह देखें की अवैध निर्माण से किसी के घर की हवा रोशनी तो बंद नहीं हो रही। अगर ऐसा होता है तो इसे तो न रोकना नियमों की अवहेलना है।

जब कोई भी व्यक्ति अति वरिष्ठ हो जाता है तो उसकी शारीरिक क्षमता पूरी तरह से खत्म हो जाती है उसको किसी न किसी का सहारा लेकर अपने काम करवाने होते हैं। अगर कोई उसकी सहायता के लिए उसके साथ चलता है तो उसको अपमान के कड़वे घूंट पीने पड़ते हैं। कुछ लोग किसी अति वरिष्ठ नागरिक की मदद करना चाहते हैं तो वह भी पीछे हटने लगते हैं। सरकार और समाज दोनों को ही इसके प्रति संवेदनशील होना चाहिए। दिल्ली पुलिस के ऊपर 11 हजार करोड़ से अधिक की राशि प्रति वर्ष व्यय होती है, परंतु दिल्ली पुलिस का अति वरिष्ठ नागरिकों के लिए कुछ भी योगदान नहीं है। अगर यह लोग थाने में जाकर SHO को मिलना चाहते हैं तो इनको मिलने नहीं दिया जाता है, अपितु अपमानित ही किया जाता है। 

दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर मीडिया प्रचार में हमेशा मुखर रहते हैं। परंतु अगर कोई अति वरिष्ठ नागरिक उनको पत्र व्यवहार द्वारा अपने उत्पीड़न के बारे में बताता है तो कभी भी लेफ्टिनेंट गवर्नर के कार्यालय से न तो कोई अधिकारी मिलने आता है, न ही उनके किसी पत्र का उत्तर दिया जाता है। दिल्ली भारत की राजधानी है और एक केंद्र शासित राज्य है। यहां तमाम शक्तियां लेफ्टिनेंट गवर्नर के पास होती हैं। अगर लेफ्टिनेंट गवर्नर ही वयोवृद्ध अति वरिष्ठ नागरिकों की अवहेलना करता है तो प्रशासन से क्या उम्मीद की जा सकती है। भारत में वयोवृद्ध अति वरिष्ठ नागरिक की आयु अवस्था में पहुंचना एक अभिशाप बन गया है। क्या ऊंचे पदों पर बैठे संवैधानिक और अन्य पदाधिकारी इसका संज्ञान लेंगे? क्या देश की न्याय प्रणाली इसके प्रति संवेदनशील बनेगी? ऐसा लगता नहीं। 


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